सच्चे और अच्छे लेखक का चला जाना

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    वे कुलदीप नैय्यर और खुशवंत सिंह जैसे धनवान, पद वान भले न हो लेकिन कलम के धनवान तो उनसे कम न थे। उनकी लोकप्रियता कमलेश्वर जैसी भले न रही हो, लेकिन सादगी, सच्चाई में उनसे भी आगे थे। लिखने का जो हुनर उनमें था वह औरों से अलग ही था। या यूं कहें विशेष ही था। जो उनके पास नहीं था उसके जिम्मेदार भी वही थे। क्योंकि उन्होंने उसे पाने की कभी कोशिश भी नहीं की। जैसे नाम, शोहरत, दौलत, लग्जरी जीवन आदि आदि।
    बहुत लेखक अपनी लेखनी में लिखते तो बड़ी बड़ी बातें हैं, लेकिन अमल में न के बराबर। कलम गांव की दास्तान लिखेंगे और जीवन शहरी जिएंगे। लेकिन यह लेखक, संपादक जैसा लिखते वैसा जीवन भी जीते।
    पत्रकारिता जगत में न. वन हिंदी समाचार पत्र नवभारत टाइम्स में उपसंपादक रहे इनके लेख आज भी मिसाल है। इनका कॉलम कबीर चौरा पाठकों द्वारा खूब सराहा जाता था। टाइम्स ग्रुप से रिटायर्ड होने के बाद कई प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी सेवाएं देते रहे।
    जवानी भर दिल्ली की चकाचौंध में रहने के बाद भी गांव की मिट्टी से जुड़ाव नहीं छोड़ा। चाहते तो दिल्ली में ही रच बस जाते। दिल्ली में लिखने वालों की कदर भी खूब है, उसके बावजूद गांव ही पसंद आया। मेरी मुलाकात भी आपसे तब हुई जब हम दैनिक शाह टाइम्स के ब्यूरो चीफ थे और आप दैनिक शाह टाइम्स के संपादक। दैनिक शाह टाइम्स में आप ब्यूरो ब्रीफिंग करते थे। सभी ब्यूरो दैनिक शाह टाइम्स के मुजफ्फरनगर कार्यालय पहुचते थे। आप बड़े अपनत्व से हम सभी को पत्रकारिता का पाठ सिखाते थे।
    दैनिक शाह टाइम्स से इस्तिफा देने के बाद हमने समाचार एजेंसी वेबवार्ता की स्थापना की। मुझे अपने साथ और सहयोग के लिए एक संपादक स्तर के योग्य व्यक्ति की तलाश थी। क्योंकि हमारा अधिकांश समय किन्नरों और वंचितों की संस्था एक एहसास में लगता था। तब मुझे आप का ख्याल आया। हम आपके गांव पहुंचे। मुझे लगा था कि भले ही आप गांव में रह रहे होंगे लेकिन रहन सहन लग्जरी होगा। परन्तु आप तो साधारण से घर में बड़ी सादगी से रह रहे थे। आपने जैसे ही देखा तो जो स्वागत का तरीका था वह भी गजब का लुभावना। आपकी मुस्कान, मेरे पुराने सहयोगी शाह टाइम्स के साथियों का हालचाल पूछना। बिल्कुल शुद्ध, निश्चल भेंट। हमने अपना प्रस्ताव रखा, एजेंसी के बारे में जानकर खुश हुए। लेकिन उम्र की वजह से दिल्ली प्रतिदिन आने जाने में उम्र को बाधा बतलाने लगे। तब हमने उनको दिल्ली में ही मकान देने का प्रस्ताव रखा परन्तु गांव से अपने जुड़ाव के चलते उन्होंने असमर्थता जाहिर की। उनके बेलालच, सादगी और सच्चाई को मन ही मन सलाम करते उनसे विदा लेकर हम वापस आ गए। हालांकि वह मिलने आईटीओ प्रताप भवन के दफ्तर आये। हमनें फिर भी गुस्ताखी की और उनके सामने ज्यादा धन का प्रस्ताव रखा। बातों बातों में हम उनको दिल्ली की मशहूर कोटला फिरोज शाह की विक्रम नगर कालोनी के एक फ्लैट को दिखलाने भी ले गए। परन्तु उन्होंने फिर वही बात दोहराई। हालांकि उन्होंने बिना प्रलोभन के, बिना मेहनताना के अपने गांव व घर से ही सहयोग का आश्वासन दिया। जो मुझे मंजूर नहीं था।
    जबकि इनको गांव में कुछ आपराधिक तत्त्वों ने जान से मारने की धमकी, फिर मारने का प्रयास भी किया। आप फिर भी विचलित नहीं हुए। ऐसे शेरदिल पत्रकार का नाम है डॉ मेहरुद्दीन खान। आपको जाते जाते बारंबार सलाम…..
     
     
     

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